महसूस कर सकता हूँ.. पर बता नहीं सकता …
क्यूँकि दर्द देता है.. इज़हार करना भी …
कल सो गया था यूँ ही.. कुरेदते हुए ज़ख़्म…
मुश्किल है इनको.. असरार रखना भी !

मैं ही क़ातिल हूँ अपनी.. नेक आदतों का …
ज़रूरी है लाशों पर.. कारोबार करना भी …
मैंने भी तो अपनी.. खुदी बुलंद रखी …
लाजिम था तेरा सितम को.. बरक़रार रखना भी !

चेहरा ओढ़ लेता हूँ.. पर आईना जानता है…
जो नहीं हूँ मैं.. वो किरदार करना भी …
छूने से पहले डुबो लेता हूँ.. गंगा मैं उँगलियाँ…
आसान था तेरे रूखसार को.. अबरार रखना भी !

अब जनता हूँ कि.. तू नहीं आएगी …
सीख लिया है तूने.. तकरार करना भी…
मेरे मन के तूफ़ान को.. जगाना ही नहीं आता…
ये अश्क़ जानते हैं इसे.. गुलज़ार रखना भी !