मैंने थामा है ख़ुद को कई बार..
ज़ख़्मों पर मिट्टी का मलहम लगाया है।
ख़ुद से ही बेसुरी सी लोरी गुनगुना..
ठंडी रातों में थपकी लगा सुलाया है।
आधी रात को जब कहीं आँख लगी तो..
सवेरे तड़के झकझोर ख़ुद को जगाया है।
बचपन खिलौनों की उम्मीद में बीता..
जवानी को पसीने से नहलाया है।
मेरे अकेलेपन को समझ लेते हैं ग़ुरूर..
ज़माने के लिए ही ये तिलिस्म बनाया है।
मिलते हैं वो भी, जो चाहे समझना मुझे..
भुला देता हूँ उनको जैसे तुझको भुलाया है।
मैं आसान नहीं हूँ..
जो सुलझ जाऊँ..
ज़रा सी बात से ही..
मैं गहरा हूँ..
तेरी सोच से भी..
अपनी औक़ात से भी।
Nice words
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Thank you for your appreciation 🙂
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बहुत खूब
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