मुक़द्दमा मेरी वफ़ाई का है अब तेरी अदालत में..
लम्हें सारे बेरुख़ी के हैं खड़े मेरी वकालत में..
आहों ने मेरी तो जिस्म जला रूह राख कर दी है..
खरोचें और देखें दम है कितना तेरी शिकायत में..
तबाही की दुआ कर रोज़ मेरा नाम लेती हो..
मोहब्बत से भी ज़्यादा है सिला तेरी अदावत में..
परदे में चेहरे की शिकन उसने छुपाई बहुत ख़ूब..
सूखी आँखों में काजल लगाया फिर सजावट में..
आज रुसवाईयॉं पी गई सारा पानी समंदर का..
और बादल भी हैं मुकरे हुए बरसने से बग़ावत में..
तमाशबीन ही थे हम भी जब शहर आए थे शायर..
पर तमाशा ख़ुद ही बन बैठे रक़ीब की रियासत में !
waah…bahut shandar.. 🙂
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गजब
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