जाने की जिद्द लेके आते हो.. मुसाफ़िर से हो
कह के भी यक़ीन ना आते हो.. गुज़ारिश से हो
ज़रा भी उम्मीद ना हो तो भीगोते हो बेपनाह..
क्यूँ भला रूठ के मनाते हो.. बारिश से हो
तुम वो दुआ हो जो भूलाने पर याद आते हो..
बेरहम क्यूँ रोज़ सताते हो.. खारिश से हो
महफ़िल में तेरा नाम जो आया मेरे लब पर..
क्यूँ गालों पर सुर्खी लाते हो.. आतिश से हो
आहिस्ता-आहिस्ता नक़ाब उठाना दिलबर..
दीदार को तकी हैं आँखें.. ख़्वाहिश से हो
हमें तो अंधेरी गलियों की आदत हो गई शायर..
क्यूँ भला आँखें मसलवाते हो.. आरिश से हो