क्या
बताएँ
सूरत-ऐ-हाल
ज़िंदगी
हर मोड़
पर
खड़े
हैं
सवाल
ज़िंदगी
आँधियाँ तो
रोक
लेंगे
बाज़ुओं
से
हम..
तू सनम
की
आहों
से
संभाल
ज़िंदगी
थक जाता
हूँ
मिला
तेरे
क़दमों
से
क़दम
सुला गोद
में
अपनी
ज़ुल्फ़
सँवार
ज़िंदगी
आ गुफ़्तगू
करें
की
फिर
कुछ
गिले
मिटे
आज शाम
मेज़
पर
हैं
दो
गिलास
ज़िंदगी
देखा था
ख़ुश
तुझे
अभी
उदास
सी
है
क्यूँ
?
इस क़दर
बदला
ना
कर
लिबास
ज़िंदगी
आधी गुज़र गई है.. बस बाक़ी आधी शायर..
नये तरीक़ों से की जाए अब ख़राब ज़िंदगी
वाह क्या खूबसूरत कविता लिखी है आपने ।।।लाजवाब लेखन।
क्या बताएँ सूरत-ऐ-हाल ज़िंदगी
हर मोड़ पर खड़े हैं सवाल ज़िंदगी।
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Thank you so much Sir 🙂
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खूबसूरत अभिव्यक्ति
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सही कहा है सर आपने कविता में कि खडे हैं सवाल हर मोड़ पर जिंदगी में ryt सर 👌👌👌
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Thank you Madam 🙂
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स्वागत है सर
आप बहुत अच्छा लिखते हैं सर
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उत्तम लेखन सर 👌👌
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