सिकती रोटी की महक..
आँगन में चिड़ियाँ कि चहक..
घी के डब्बों कि खपत..
और गुल्लक की बचत..
खेल में घुटने कि रगड़..
उस पर माँ की झिड़क..
सैर-सपाटे की सड़क..
सुबह की चाय कड़क..
वो छुट्टियाँ गर्म सी..
जाड़े की धूप नर्म सी..
झूठ पकड़े जाने पे सकपकाना..
फिर यारों का नाम लगाना..
याद आता है गुनगुनाना..
वो नींदों में भी मुस्कुराना।