इस शहर की बारिश तुम्हारी तरह है
बरसने की ख़्वाहिश तुम्हारी तरह है
सायों से सहमा हुआ सा में निकलूँ
भीगाने की साज़िश तुम्हारी तरह है
सड़कों पर नाचता-गाता बचपन
जवानी की बंदिश तुम्हारी तरह है
दिन को भिगो कर शाम कर रखा है
भड़कती ये आतिश तुम्हारी तरह है
हवाओं की शह पर ये पानी के छींटे
जुनून की नुमाइश तुम्हारी तरह है
रात जब तन्हाई तनहा सी हो शायर
आने की गुंजाईश तुम्हारी तरह है।
…MumbaiRains
वाह भाई वाह !! आप छा गऐ हैं…
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बहुत सुंदर लिखा..आपने
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Thank you 🙂
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Tnku
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