मैं अशक्त हूँ, मैं हूँ निराश
मैं स्वयं अपना हूँ विनाश
दे संबल निज हाथ का
मुझ तम को कर प्रकाश

दे कर दिशा परमार्थ की
रख लाज मेरी बात की
अपनी मनोरथों का सारथी
तू मुझको बना माँ भारती।

अब तक मैंने किया क्या है?
एक स्वाँस भी जिया क्या है?
मुक्त हो जाऊँ तेरे उपकार से
ऐसा कर कोई दिया क्या है?

हर कामना हो निस्वार्थ सी
माह श्रावण में रमज़ान सी
अपनी मनोरथों का सारथी
तू मुझको बना माँ भारती।

क्या वो दृश्य मैंने देखा नहीं
हुआ आँचल तेरा मैला नहीं
वो सब घाँव तेरे तन पर हैं
जिनका दंश मैंने झेला नहीं

बह जाए मेरे रक्त की नदी
तेरे चरणों को यदि प्रक्षालती
अपनी मनोरथों का सारथी
तू मुझको बना माँ भारती।