जिसे था अभी छुवाँ-छुवाँ
वो इस घड़ी धुवाँ-धुवाँ
एक ख़्वाब भूल रहा हूँ मैं
और आँखों में नींदे कहाँ
खिड़कियाँ खोल देखूँ तो
कैसे जी रहा है जहाँ ?
अंधेरी होगी और भी
ये रात अभी है जवाँ
इस बर्फ़ सी खामोशी में
क्या है लहूँ रवाँ-रवाँ ?
कहना उससे तू याद है
मिले अगर यहाँ-वहाँ
हर बात अधूरी है ‘शायर’
फिर भी पूरी है दास्ताँ
Bhaut hi sundar panktiyan… 🙂
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Thanks Bro 🙂
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