वो एक जहाँ जो है वक़्त से परे..
शायद वही हैं ख़्वाब बाक़ी अधूरे।
कदमों के निशाँ साहिल पे बनाती..
लहरों से बेख़बर ज़िंदगी चले।
रात टूटते तारों से उम्मीदें लगातीं..
ख़्वाहिशें लेटी रहीं आसमाँ तले।
आज मिल लेते हैं तुझसे अजनबी..
कल क्या पता क्या हादसा मिले।
नाराज़ हो तुम कि ये मायूसी क्यूँ..
खुद मुस्कराए हो आज कितनी दफे?
ढूँढते ढूँढते वो आख़िरी मंज़िल..
ख़ाक में कभी, कभी आग में जले।
👌👌👌nice
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Thank you 🙂
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