आधी-अधूरी हँसी लिए तुम..
क्या समझाना चाहती हो?
सिरहाने गुज़ारोगी रात सारी..
या घर जाना चाहती हो?
कोशिश है नज़रें चुराने की..
या शरमाना चाहती हो ?
चाँद देखोगी छत से हमारी..
या घर जाना चाहती हो?
ये होठों की थरथराहट है..
या गुनगुनाना चाहती हो?
आज़ाद करोगी ज़ुल्फ़ों को..
या घर जाना चाहती हो?
चुप-चुप सी इन आँखों से..
क्या बतलाना चाहती हो?
और सुनोगी ये खामोशी..
या घर जाना चाहती हो?
रोका तो तुमको ना मैंने कभी..
क्यूँ इतराना चाहती हो?
रात भर रो के कब्र पर मेरी..
फिर घर जाना चाहती हो।
👌👌👌
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बेहतरीन 👌
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Dhanyawaad 🙂
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