ये ना कहो के हमको सलीका ही नहीं,
वो क़त्ल कर गए हमने चीखा ही नहीं
आधी रात और दर पर उनकी दस्तक,
मना कर सकते थे पर सीखा ही नहीं
मुस्कराहट चेहरे पर जो ओढ़ आए थे,
आस्तीनों का मंज़र हमें दिखा ही नहीं
जिस्म के टुकड़े तो सौ किए ही लेकिन,
ख़ंजर भी वो लाए थे जो तीखा ही नहीं
दो लफ़्ज़ भी नहीं नाम मेरे कातिल का,
लहू बहा भी इतना कि लिखा ही नहीं
As usual, awesome! 🙌
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Thanks Bro.
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