अंतरिक्ष के शून्य में
जहाँ मौन भी मौन हो
व अनंत अवकाश में
यक्ष प्रश्न गौण हो
तम के उस विस्तार में
किए स्वयं का तर्पण
हों तैरते विचार भी
रहित गुरुत्वाकर्षण
रिक्तता से भरे हुए
हों सारे आयाम
अस्तित्व से जुड़े सभी
क़यासों पर विराम
निगलते उस एकान्त में
जब हो चित्त का बोध
विलीन हो ब्रह्मांड में
अंतर्मन का विरोध
तब अंतिम उस पड़ाव में मुट्ठी खोल कदाचित्
कर दूँगा आकाशगंगा में तेरी भस्म विसर्जित