तेरी बेरुख़ी जैसे हवा में नमी
मेरी बेचैनी भी सुलगती जमीं
उबल के पिघले यूँ सारी रात
ख्वाहिशें जो हैं दिन भर तपीं
सुनाई दे बस साँसों का शोर
उतरते चाँद की आहटें दबीं
बुझाओ ना कोई शमा आज
देखा जाए आलम-ऐ-बेख़ुदी
लिपटो मुझ पर लिबास बन
ढक लो मेरी कमियाँ सभी
तेरी बेरुख़ी जैसे हवा में नमी
मेरी बेचैनी भी सुलगती जमीं
उबल के पिघले यूँ सारी रात
ख्वाहिशें जो हैं दिन भर तपीं
सुनाई दे बस साँसों का शोर
उतरते चाँद की आहटें दबीं
बुझाओ ना कोई शमा आज
देखा जाए आलम-ऐ-बेख़ुदी
लिपटो मुझ पर लिबास बन
ढक लो मेरी कमियाँ सभी