यूँ आसमाँ से गिरूँ..
फुहार हो जाऊँ
संग हवा के फिरूँ..
फ़रार हो जाऊँ
अधूरा हूँ अब तक..
अश’आर हो जाऊँ
तेरे लफ़्ज़ों में फिर..
शुमार हो जाऊँ
खामोशी लीप कर..
दीवार हो जाऊँ
चेहरे को तपा लूँ..
बुख़ार हो जाऊँ
घुटन ये मिटे जब..
दरार हो जाऊँ
फट के यूँ निकलूँ..
ग़ुबार हो जाऊँ
कोई तो वजह हो..
निसार हो जाऊँ
या खुद को बेच दूँ..
बाज़ार हो जाऊँ
“Khud ko bech doon, bazaar ho jau”… what a line! 👌
LikeLike