इस तरह मेरे दिल के अरमान निकले,
इस शहर की बाहों में हर शाम निकले
 
बेताबियाँ बड़ा देती है फाल्गुन की हवा,
सर्दियों की मोहब्बत भी बेईमान निकले
 
सोचता हूँ झीलों के किनारे घण्टों बैठे,
जिन आँखों में डूबे वो मेहमान निकले
 
दिल का कमरा खोल कल बुहारा जो,
बिंदी, काजल जाने क्या सामान निकले
 
सिमटी सँकरी गलियों में चलते चलते,
बचपन, यादें, यारों के मकान निकले
 
नींद तो हर जगह, हर दफ़ा आई मुझको,
पर अपने शहर आकर ही थकान निकले