बेशक वो मोहब्बत भी ज़िंदा होती
अगर इंसानियत ना शर्मिंदा होती
चुन्नी जो लिपटी रही आबरू बनके
क्या जुर्रत थी की वो फंदा होती
वो सब हुक्मरानों के दफ़्तर भागे
जहाँ मौत खुद एक कारिंदा होती
ढूँढते किस-किस ने पिया है खून
तो ये सारी बस्ती ही दरिंदा होती
देख पाती सुबह का सुर्ख़ आसमाँ
कितनी ही ख़्वाहिशें परिंदा होती